धरती माँ ये झूम के बोली मस्त मगन हो घूम के बोली चली पवन पुरवाई रे कैसी ऋतु ये बसन्ती आई। रंग बिरंगे फूल खिले हैं नदियों के देखो कूल मिले हैं पपिया बोले कोयल कूँ के मौसम ले अंगड़ाई रे कैसी ऋतु ये बसन्ती आई। मस्त हुई खेतों की क्यारी नाच रही ढेरों फुलवारी गेंहूँ सरसों चने धान सब कृषक लेत हरियाई रे कैसी ऋतु ये बसन्ती आई। रंग गुलाल लिए सब आए भूल विषाद बड़े हर्षाए फ़ाग राग रसिया सब बन गए नाचें गावैं धूम मचाई रे कैसी ऋतु ये बसन्ती आई। हुलसित हैं मन सबके ही पुलकित हैं तन सबके ही रंग बिरंग कन्हाई रे कैसी ऋतु ये बसन्ती आई। ♥️ Challenge-876 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ होली की हार्दिक शुभकामनाएँ 😊💐💐 ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।