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रुलाकर हँसाना और हँसाकर रुलाना, अजीब दस्तूर है। मो

रुलाकर हँसाना और हँसाकर रुलाना, अजीब दस्तूर है।
मोहब्बत की राहों में यह मोहब्बत, कितनी मजबूर है।।

©Shubham Bhardwaj
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