कन्चों की खनक थी थी कागज की कश्ती नंगे पैर घुम आते गली-गली हर एक बस्ती मिट्टी से था अटूट रिश्ता नहलाया जाता था जबरदस्ती खुश होते है आज भी याद करके वो मौज़-मस्ती । वक़्त का तब पता नहीं चलता था आज देखते है हर पल घड़ी नजाने किस झोल में फँसे है दुनिया लगती है माया जाल बड़ी धुन सवार है सपनों की सिर पर जमाने की ऊँची दिवार है खडी बस जिना चाहते थे हर लम्हे को कमबख़्त ख्वाहिशें है आज ज़िद पर अडी अभी कर लेते है थोड़ी मेहनत जीं लेंगे फिर बच्चों के साथ बचपन सुनी है मेंने ये बात बड़ो से बच्चे बन जाते है फिर जब होती है उम्र पचपन दिन काटना नहीं जिना है आज भी यादें रह जाएगी,आएगा नहीं फिर ये लडकपन भूल जाए चलो,कब तक याद रखे बेकार की बातें छोटी सी है ज़िन्दगी।जरूरी नहीं है याद रखना हर इक अनबन... ✍️Bhawna Purohit #InspireThroughWriting #bachpan #Ladakpan #kavita -✍️Bhawna Purohit