अलसाये हुए शहर को आज फिर एक सुबह हौले से जगा रही थी। आसमान से एक और उन्नति की रात अपना अंधेरा समेटती जा रही थी , हल्का-सा सिंदूरी रंग बिखरने लगा था लेकिन सूरज निकलने में अभी वक्त था। ऐसा पांच- सवा पांच बजे का वक्त हमेशा के लिए मेरा पसंदीदा रहा है "क्योंकि यही वह वक़्त है जिसमें मेरे अंदर का कल्पनाशील कलाकार मन जागा होता है" #दिसम्बर_की_सर्द_हवा #सुबह_का_ख्याल #कल्पनाओं_का_शहर #yqbaba #yqdidi #yqaestheticthoughts