मंदिर में जो पूजा करे,घर में ना हो कलेश । पत्थर में ईश्वर दिखे, और बापू बने भवेश।। इनसे ही बचे है,दया धर्म ईमान । पत्थर भले इंसान है पर,नरम दिल भगवान ।। है सनातनी तभी तो,लगाते छप्पन भोग । आज भी पैर धोकर पीते है,बिना ज्ञान लोग ।। पाखंड फैला कर बन गए,निरंकारी माला माल । सत्संग के नाम पर, बिछाते माया जाल ।। एक परिवार के कब्जे में, अरबों अरबों माल । सब जानते फिर भी बजाते,झूठा बस ये गाल ।। ©Ashok Verma "Hamdard" मंदिर