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दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से,




दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।
पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है।
जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।।
कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गये हैं ।
हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।।

दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।


तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में ।
मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।।
शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को।
बिजलियों की कौंध में भी, पंथ गढ़ता ही रहूँगा।।

दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।

©Awanish Singh (AK Sir)
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कविता कविता

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