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#OpenPoetry साँझ यह साँझ का अंधेरा उसपे चाँदनी का

#OpenPoetry  साँझ
यह साँझ का अंधेरा
उसपे चाँदनी का डेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा 
इच्छा है  मेरे मन में 
तारों के उस उपवन में 
निष्छंद मैं विहारुँ
तरुवर की चोटी पर से
मैं चन्द्रमा निहारुँ...
मेरे ग्राम की भी आभा
इसी चंद्रिका से होगी
सुनसान सी गली मे
झींगुर की तान होगी
होगी गुँजती कोई लोरी
बेसुध जम्हाई होगी...
होगा साँझ का अंधेरा
उसपे चाँदनी का डेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा #OpenPoetry
#OpenPoetry  साँझ
यह साँझ का अंधेरा
उसपे चाँदनी का डेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा 
इच्छा है  मेरे मन में 
तारों के उस उपवन में 
निष्छंद मैं विहारुँ
तरुवर की चोटी पर से
मैं चन्द्रमा निहारुँ...
मेरे ग्राम की भी आभा
इसी चंद्रिका से होगी
सुनसान सी गली मे
झींगुर की तान होगी
होगी गुँजती कोई लोरी
बेसुध जम्हाई होगी...
होगा साँझ का अंधेरा
उसपे चाँदनी का डेरा
पंछी सा उड़ना चाहे
मन बाँवरा सा मेरा #OpenPoetry
arunks8059127539110

Arun Ks

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