#OpenPoetry साँझ यह साँझ का अंधेरा उसपे चाँदनी का डेरा पंछी सा उड़ना चाहे मन बाँवरा सा मेरा इच्छा है मेरे मन में तारों के उस उपवन में निष्छंद मैं विहारुँ तरुवर की चोटी पर से मैं चन्द्रमा निहारुँ... मेरे ग्राम की भी आभा इसी चंद्रिका से होगी सुनसान सी गली मे झींगुर की तान होगी होगी गुँजती कोई लोरी बेसुध जम्हाई होगी... होगा साँझ का अंधेरा उसपे चाँदनी का डेरा पंछी सा उड़ना चाहे मन बाँवरा सा मेरा #OpenPoetry