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मुझे यकीं है की परियाँ होती है, फूलों में रंग वही

मुझे यकीं है की परियाँ होती है, फूलों में रंग वही भरती हैं,
सोई कोपल जगाती हैं, दूब पर ओस बिखेरती हैं,
ऊषा -साँझ के रंग सजाती हैं,
पतझड़ में जब पत्ते ,पेड़ों से बिछड़ते हैं,
उन्हें ढांढस बंधाती हैं, बहार आने को है, ये समझाती हैं।
बारिश और बादलों की सिम्फनी की सूत्रधार भी वहीं हैं
चिड़िया के बच्चे जब उड़ना सीखते हैं, उनका हौसला बढ़ाती हैं
रात में चाँद पार बैठती हैं ये सारी, आसमान में पाँव झुलाती हैं
जागते बच्चों को, नींद के जंगल की सैर करवाती हैं
सुबह हुई, आज के अख़बार में लिखा था
एक कोपल को बीज में ही रौंद दिया
फूलों को मसल दिया, जंगल काट दिए
आजकल सनबर्ड बगीचे में नहीं आती
मुझे यकीं है की परियाँ होती हैं।

©Rahul Bhardwaj
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