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दुनिया चाहें कितने भी कसे हम पे तंज अपने सीने में

दुनिया चाहें कितने भी कसे हम पे तंज
अपने सीने में कितने ही दबे हुए हों रंज
निकल पड़ा हूँ कलम को लेकर पत्थरों की डगर पे,
कहीं भी चला जाऊं,हमेशा रहेगा दिल में गुरसहायगंज
रचनाकार-अरुण चक्रवर्ती गुरसहायगंज

©Poet Arun Chakrawarti,Mo.9118502777 हमारा गुरसहायगंज कन्नौज उत्तर प्रदेश
दुनिया चाहें कितने भी कसे हम पे तंज
अपने सीने में कितने ही दबे हुए हों रंज
निकल पड़ा हूँ कलम को लेकर पत्थरों की डगर पे,
कहीं भी चला जाऊं,हमेशा रहेगा दिल में गुरसहायगंज
रचनाकार-अरुण चक्रवर्ती गुरसहायगंज

©Poet Arun Chakrawarti,Mo.9118502777 हमारा गुरसहायगंज कन्नौज उत्तर प्रदेश