तुम्हें क्या कहूँ किस क़दर, हसीन लगते हो के ज़न्नत की हूर उतरी है, जमीन लगते हो। सादगी में भी वल्लाह! नाज़नीन लगते हो पुर-लिबास बदन में भी, महज़बीं लगते हो और कितनी तारीफ़ें करूँ ए हुस्न-ओ-जाना तुम भँवरे की गूँज, तितली का दिल लगते हो झील में अभी अभी खिला सफेद, कंवल लगते हो यानी कि गुलज़ार की शायरी मीर की, ग़ज़ल लगते हो तुम्हें क्या कहूँ किस क़दर, हसीन लगते हो के ज़न्नत की हूर उतरी है, जमीन लगते हो। सादगी में भी वल्लाह! नाज़नीन लगते हो पुर-लिबास बदन में भी, महज़बीं लगते हो और कितनी तारीफ़ें करूँ ए हुस्न-ओ-जाना तुम भँवरे की गूँज, तितली का दिल लगते हो