#OpenPoetry सड़को के किनारे का मैं फूल, कोई तो मुझपर से हटादो ये सड़को की धूल। हवा मुझे अपने झोके से झूलाती है, बारिश अपने बूंदों से ,मुझे नेहलाती है। सूरज की किरण उमीद की लहर के कर आती है, और बंद कलियों को खिलाती है। भगवान के चरणों में भले ही नहीं है मेरा स्थान, फिर भी कुश हूं ,छोटे कीड़ों- तितलियों को कर सेवा प्रदान। इतना भी सुंदर नहीं हूं , और ना ही अपने अंदर कोई खुशबू समेटा हूं मै, दीवार की दो इटों के बीच में से भी जन्म लेता हूं मैं। सड़को के किनारे का मैं फूल, कोई तो मुझपर से हटादो ये सड़को की धूल। -राहुल गुप्ता #OpenPoetry सड़कों के किनारे का मैं फूल...!_राहुल गुप्ता