सुन री सखी गुमसुम है क्यूँ, तुझे देख रहे तेरे साजन मुरझायी सी कुसुम कला यूँ,क्या अच्छा नहीं है राजन देख उधर क्या नैन नक्श है, मनमोहक सा चेहरा फिर क्यूँ तेरे नैनों मे अश्क हैं ,और आँखों मे पहरा देख उधर एक बार सखी तू ,क्या सुन्दर इसका रूप प्रातः भानु वितरित किरण सा ,खिली सुनहरी धूप कुसुम लताएँ मारे शरम के ,मन्द मन्द मुस्कातीं सूरजमुखी सी खिलती कलियां ,देख देख ललचातीं और तू है कि बेशर्म खड़ी है किस बोझ तले तू दबी पड़ी है सोंच ले अपने बारे मे फिर ऐसा न मिलेगा बालम सुन री सखी गुमसुम है क्यूँ, तुझे देख रहे तेरे साजन मुरझायी सी कुसुम कला यूँ,क्या अच्छा नहीं है राजन देख उधर मुस्कान तू उसकी ,ले गई मेरी जान हाँ कर दे एक बार सखी तू ,बात ले मेरी मान छोड़ दे अपनी जिद मनचढ़ी, अब तू कर दे हाँ वरना तू पछताएगी गोरी, "हाँ "जो मैने भर दी ना जो होता मेरा साजन ये तो ,पलकों पे सेज सजाती निहारती रहती दिन भर उसको, न पानी भरने जाती ओरी सखी कुछ बोल दे तू अपने लबों को खोल दे तू कब से तू चुपचाप खड़ी है मान ले अपना भाजन सुन री सखी गुमसुम है क्यूँ, तुझे देख रहे तेरे साजन मुरझायी सी कुसुम कला यूँ,क्या अच्छा नहीं है राजन #प्रकाश