ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो, जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो। हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त, संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।। मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो, जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो। नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां, अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।। मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी, पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी। नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण, चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र