सुनो! ये आबले हैं दिल के, यूँ दिखाई ना देंगे, लफ़्ज़ वालों को सन्नाटे के शोर सुनाई ना देंगे। मुतमइन है वो ये सोच कि बुझ चुका है चराग़, हम भी अड़े हैं ज़िद पे, सूरज को रौशनाई ना देंगे। आबले - छाले मुतमइन - संतुष्ट