माना की बहुत ही मज़बूत हूँ मैं, बहुत कठिनाईयाँ की हैं पार, धैय॔ की जीत का सबूत हूँ मैं। ज़िम्मेदारियाँ पूरी ईमानदारी से हमेशा, सब अपनी पूरी की, लोगों का बना सहारा, हिम्मत हमेशा सबको दी। पर कभी-2 कमज़ोर पड़ जाता हूँ जब, मज़बूत रहने का भी बहुत नुकसान है, लगता है तब। लोगों को हमारे दुख, दुख ही नही लगते, या यूँ कहिए, दुख दिखते ही नही। दिखावे का ज़माना है साहब, जितना दिखाओगे, उतना दुख लोगों को नज़र आएगा, दुख का ढ़िनडोरा ना पीटने वाले तो, खुद को अकेला ही पाऐंगे, क्योंकि वह हमेशा, मज़बूत ही समझे जाऐंगे। वह भी इंसान हैं आखिर, कभी-2 तो लाज़मी है, उनका भी होंसला जाना टूट, कभी तो उनको समझो, कभी तो लो उनको पूछ। धीरे-2 अंदर से, बहुत ही बिखर जाते हैं वो, असलियत वो बिलकुल नही होती, नज़र आती है जो। #मज़बूत इंसान