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*** ग़ज़ल *** *** मुनासिब *** " कुछ बातें मुनास

*** ग़ज़ल *** 
*** मुनासिब *** 

" कुछ बातें मुनासिब कर तो देते, 
जहाँ तक साथ चलते कुछ बातों का जिक्र कर तो लेते, 
अफसोस और मलाल अब तुझे भी रहेगा,
मुझसे बातों का इरादा अब कुछ तुझे भी  रहेगा, 
तुम मिलती फिर कही तो कोई बात मुनासिब तो करते, 
दिल में हैं जो चाहत ओ तुमसे वाकिफ़ तो करते, 
हसरतों का मुसलसल यही वाजिब ख्याल ठहरा, 
कही मिलती तुम तो तेरा साथ हमनवा कर तो लेता ,
कोई सहर शाम मुनासिब कर तो कर, 
मैं तुम्हें मिल सकु ऐसी कोई साजिश तो कर,
उलफ़ते-ए-हयात फिर नज़र की बातें समझ में आयेगी, 
इन पमाल रास्तों से कोई हौसला नहीं बदला,
रुख कर कोई फिर कोई तो बात बने‌, 
मैं तुम्हें मिल सकु ऐसी कोई तो हलात बने, 
कुछ जिद्द तु भी कर कि मैं ये मलाल कायम रख तो सकु, 
तेरे हिज्र की रातें ऐसे मुनासिब हो तो‌ हो, 
फिर मैं तेरा किसी हाल में हो तो सकु. "

                 --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** 
*** मुनासिब *** 

" कुछ बातें मुनासिब कर तो देते, 
जहाँ तक साथ चलते कुछ बातों का जिक्र कर तो लेते, 
अफसोस और मलाल अब तुझे भी रहेगा,
मुझसे बातों का इरादा अब कुछ तुझे भी  रहेगा, 
तुम मिलती फिर कही तो कोई बात मुनासिब तो करते,
*** ग़ज़ल *** 
*** मुनासिब *** 

" कुछ बातें मुनासिब कर तो देते, 
जहाँ तक साथ चलते कुछ बातों का जिक्र कर तो लेते, 
अफसोस और मलाल अब तुझे भी रहेगा,
मुझसे बातों का इरादा अब कुछ तुझे भी  रहेगा, 
तुम मिलती फिर कही तो कोई बात मुनासिब तो करते, 
दिल में हैं जो चाहत ओ तुमसे वाकिफ़ तो करते, 
हसरतों का मुसलसल यही वाजिब ख्याल ठहरा, 
कही मिलती तुम तो तेरा साथ हमनवा कर तो लेता ,
कोई सहर शाम मुनासिब कर तो कर, 
मैं तुम्हें मिल सकु ऐसी कोई साजिश तो कर,
उलफ़ते-ए-हयात फिर नज़र की बातें समझ में आयेगी, 
इन पमाल रास्तों से कोई हौसला नहीं बदला,
रुख कर कोई फिर कोई तो बात बने‌, 
मैं तुम्हें मिल सकु ऐसी कोई तो हलात बने, 
कुछ जिद्द तु भी कर कि मैं ये मलाल कायम रख तो सकु, 
तेरे हिज्र की रातें ऐसे मुनासिब हो तो‌ हो, 
फिर मैं तेरा किसी हाल में हो तो सकु. "

                 --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** 
*** मुनासिब *** 

" कुछ बातें मुनासिब कर तो देते, 
जहाँ तक साथ चलते कुछ बातों का जिक्र कर तो लेते, 
अफसोस और मलाल अब तुझे भी रहेगा,
मुझसे बातों का इरादा अब कुछ तुझे भी  रहेगा, 
तुम मिलती फिर कही तो कोई बात मुनासिब तो करते,