शोर मचा बिन सोचे समझे, अक्रांत हृदय करते हो। क्यों?आख़िर किसलिए? दिलों में तुम नफ़रत भरते हो। कटुता के बिरवा बो कर, सौहार्द राष्ट्र का खण्डित कर! मानवता के दुश्मन बन तुम, क्यों धर्म द्वेष से धोते हो। पिछली 70 सालों का अध्ययन किया जाए तो हम समझ सकते है कि देश को यहाँ तक पहुँचाने में किसका हाथ है। जी अधिकतर लोग कांग्रेस या नेताओं को गरियाते हुए सिस्टम को दोषी ठहरा देते है। कुछ उदारवादी विचारक इसे स्वयं पर ही टेप देते है। किन्तु मुझे तो यह सब सिर्फ अपनी शिक्षा व्यवस्था की कमी लगी। : बाहर का ज्ञान थोपकर सभी को एक जैसा बनाने की कोशिश। यह "अंग्रेजियत" बनकर छा गई अब शरीर से ऊपर कुछ रहा ही नही। पश्चिम की भोगवादी संस्कृति के साथ बड़े होते बच्चे पेट आगे कुछ सीख ही नही पाते।#नौकरी_का_नशा उनको बस जुआरे का बैल बनाकर रख दिया। अंग्रेज़ो को तो बैल ही चाहिए थे । जो जुआरे में सेट हो गए वो बैल हो गए और जो बच गए सांड बनकर उगती फ़सल को बर्बाद कर रहे हैं। अपना पेट भरना है भले सिर फूटे या कुछ भी हो। यहीं से सारे बिष के बीज समाज के भीतर बो दिए गए जिसके फल - भ्रष्टाचार, बेईमानी, लूट, अनाचार, दुराचार, अत्याचार, और हिंसा बनकर खाए जा रहे हैं। : हमारे शास्त्रों को तो "अंग्रेजियत" आने से पहले ही दफना दिया गया था। जो बच गए उनमें इतनी मिलावट कर दी कि पढ़ते ही काल्पनिक लगने लगें।या बस मनोरंजन के ही काम आएं। अब जब चोट लगती है तो पूरा समाज बिलबिला जाता है और बिल्बिलाहत में अंट-संट बकता है। एक दूसरे को दोष देकर आपस में बैर बढ़ाता है। अरे भई जो हो गया उसको आज खींचकर सामने क्यों रखते हो? अगर आप आज को बेहतर करना चाहते हैं तो आज के हालातों पर ध्यान दीजिए आज से 5 हजार साल पहले क्या हुआ ? कोई नही जानता। बेहतर हुआ तो सम्मान कीजिये बुरा हुआ तो भूल जाइये बस। : समय समय पर देश के कई जाने माने विद्वानों ने इस बात को बताने का प्रयास भी किया है कि - शिक्षा में उसके सिस्टम को बदलने की महती आवश्यकता है। देश के संचालकों ने उस ओर ध्यान नही दिया उसे धार्मिक जामा पहनाकर एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए उसी का खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है।