एक माँ का वात्सल्य एक माँ का वात्सल्य भाव निहारता है निशदिन अपने फौजी बने बेटे के आगमन को, हर कोना कोना याद करती बचपन का उसका काश वापस फिर से लौट आने को, बड़े चाव से जब भी बनाती अपने बेटे के पसंद का खाना राह तकती एक निवाला खिलाने को,माँ का वात्सल्य भाव वही माँ जाने जो अपने अनमोल रत्न जिगर के टुकड़े को सरहद पर भेजती है, मीलों की दूरी ही सही संतान से उसकी उससे दुआ उसकी सलामती की दिन रैन वो फिर भी करती है, माँ का वात्सल्य भाव कभी कम न होता अपने संतान को देखने की आस हर लम्हा रखती है आये पैग़ाम बेटे के उसका माँ मैं आ रहा हूँ, यही सुनने को दरवाज़े पर टकटकाती नजर रखती है, काव्य मिलन पांचवा चरण वात्सल्य भाव एक माँ का वात्सल्य 💐🇮🇳💐🇮🇳💐🇮🇳💐🇮🇳💐🇮🇳💐🇮🇳💐🇮🇳💐🇮🇳💐 माँ का वात्सल्य भाव अपने संतान के प्रति लगाव कभी खत्म नहीं होता वो माँ का प्रेम भाव बड़ा ही निस्वार्थ होता है,जब बेटा उसका सरहद पर हर मौसम की