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अपना अधिपत्य है मौसम का, जैसे इसकी मनमानी है, कहीं

अपना अधिपत्य है मौसम का, जैसे इसकी मनमानी है,
कहीं सर्दी, कहीं गर्मी, कहीं मूसलाधार बरसता पानी है।

सुलग रही थी  लावा  बनकर, प्यासी धरा की  छाती से,
ठंडक पहुँचाया तृप्त किया, बस इसकी यही कहानी है।

बारिशों के  मौसम में,  सम्पूर्ण  धरा, हरा-भरा  हो गया,
कैसे कहें  इसे नादानी हम, ये तो  मौसम की  रवानी है। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-60 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
अपना अधिपत्य है मौसम का, जैसे इसकी मनमानी है,
कहीं सर्दी, कहीं गर्मी, कहीं मूसलाधार बरसता पानी है।

सुलग रही थी  लावा  बनकर, प्यासी धरा की  छाती से,
ठंडक पहुँचाया तृप्त किया, बस इसकी यही कहानी है।

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कैसे कहें  इसे नादानी हम, ये तो  मौसम की  रवानी है। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

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