Nojoto: Largest Storytelling Platform

।। ओ३म् ।। स॒द्यो जा॒त ओष॑धीभिर्ववक्षे॒ यदी॒ वर्ध

।। ओ३म् ।।

स॒द्यो जा॒त ओष॑धीभिर्ववक्षे॒ यदी॒ वर्ध॑न्ति प्र॒स्वो॑ घृ॒तेन॑। 
आप॑इव प्र॒वता॒ शुम्भ॑माना उरु॒ष्यद॒ग्निः पि॒त्रोरु॒पस्थे॑॥

पद पाठ
स॒द्यः। जा॒तः। ओष॑धीभिः। व॒व॒क्षे॒। यदि॑। वर्ध॑न्ति। प्र॒ऽस्वः॑। घृ॒तेन॑। आपः॑ऽइव। प्र॒ऽवता॑। शुम्भ॑मानाः। उ॒रु॒ष्यत्। अ॒ग्निः। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थे॑॥

यदि अग्नि सूर्यरूप से भूमि के जल को खींच कर वर्षा न करावे तो कोई भी ओषधि न हो। जैसे कोई रूठा हुआ किसीको मारता है, वैसे जलता हुआ अग्नि पाये हुए पदार्थों को जला देता है। और जैसे प्रसन्न होता हुआ मित्र मित्र की रक्षा करता है, वैसे युक्ति से सेवन किया हुआ अग्नि पदार्थों की रक्षा करता है ॥

If fire does not pull the ground water from the sun and rain it, then there is no vegetation.  Just as someone kills a disheveled one, in the same way, burning fire burns the found substances.  And as a happy friend protects a friend, in the same way the fire consumed by the device protects.

( ऋग्वेद ३.५.८ ) #ऋग्वेद #वेद #औषधि #वर्षा #सूर्य #यज्ञ
।। ओ३म् ।।

स॒द्यो जा॒त ओष॑धीभिर्ववक्षे॒ यदी॒ वर्ध॑न्ति प्र॒स्वो॑ घृ॒तेन॑। 
आप॑इव प्र॒वता॒ शुम्भ॑माना उरु॒ष्यद॒ग्निः पि॒त्रोरु॒पस्थे॑॥

पद पाठ
स॒द्यः। जा॒तः। ओष॑धीभिः। व॒व॒क्षे॒। यदि॑। वर्ध॑न्ति। प्र॒ऽस्वः॑। घृ॒तेन॑। आपः॑ऽइव। प्र॒ऽवता॑। शुम्भ॑मानाः। उ॒रु॒ष्यत्। अ॒ग्निः। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थे॑॥

यदि अग्नि सूर्यरूप से भूमि के जल को खींच कर वर्षा न करावे तो कोई भी ओषधि न हो। जैसे कोई रूठा हुआ किसीको मारता है, वैसे जलता हुआ अग्नि पाये हुए पदार्थों को जला देता है। और जैसे प्रसन्न होता हुआ मित्र मित्र की रक्षा करता है, वैसे युक्ति से सेवन किया हुआ अग्नि पदार्थों की रक्षा करता है ॥

If fire does not pull the ground water from the sun and rain it, then there is no vegetation.  Just as someone kills a disheveled one, in the same way, burning fire burns the found substances.  And as a happy friend protects a friend, in the same way the fire consumed by the device protects.

( ऋग्वेद ३.५.८ ) #ऋग्वेद #वेद #औषधि #वर्षा #सूर्य #यज्ञ