रे मनवा! देख रे मनवा, लोग कैसे लगते हैं जनम-जनम के भूखे, अनन्त कामनाओं वाले मानसिकता पूरी तरह अभावग्रस्त, किसी को भूख धन की, किसी को पुत्र की, किसी को यश की, किसी को सुख की, राग-द्वेष, लोभ मोह, अभिनिवेश और ऊपर से अहंकार रोकता नहीं जो कामना के आवेग को प्रवाह में आवेश के बंधन में डालते