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रे मनवा! देख रे मनवा, लोग कैसे लगते हैं जनम-जनम के

रे मनवा!
देख रे मनवा,
लोग कैसे लगते हैं
जनम-जनम के भूखे,
अनन्त कामनाओं वाले
मानसिकता पूरी तरह
अभावग्रस्त,
किसी को भूख
धन की,
किसी को पुत्र
की,
किसी को यश
की,
किसी को सुख
की, राग-द्वेष, लोभ
मोह, अभिनिवेश
और ऊपर से
अहंकार
रोकता नहीं जो
कामना के आवेग को
प्रवाह में आवेश के
बंधन में डालते
रे मनवा!
देख रे मनवा,
लोग कैसे लगते हैं
जनम-जनम के भूखे,
अनन्त कामनाओं वाले
मानसिकता पूरी तरह
अभावग्रस्त,
किसी को भूख
धन की,
किसी को पुत्र
की,
किसी को यश
की,
किसी को सुख
की, राग-द्वेष, लोभ
मोह, अभिनिवेश
और ऊपर से
अहंकार
रोकता नहीं जो
कामना के आवेग को
प्रवाह में आवेश के
बंधन में डालते