जब शमा ही न रही, तो भला हम कैसे चमकते रहें । मात्र ढाई अक्षर के चक्कर में हम आशियाने में भटकते रहे।। स्नेह की कमान से अस्त्र निकलते रहें। एक दो नहीं हज़ारों ही मरते रहें।। उसकी बेजुबां कातिल निगाहें मेरा यूँ ही कत्ल करती रहीं। प्रेमार्पण समझकर हम यूं मुस्कराते रहें।। #nojoto_my_poetry