कहाँ चला आज का मानव खो जीवन का परमार्थ? कर रहा विनष्ट जीवन का लक्ष्य और नेक भावार्थ, न सदाचार,न शिष्टाचार, समाप्त हुये सद्व्यवहार, कर आभास लौटा दो नेक नियती, यही है सत्यार्थ। समय सीमा : 14.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,