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मैं एक ऐसे मझधार में खड़ा हूं कि कहा जाना है और

 मैं एक ऐसे मझधार में खड़ा हूं कि कहा जाना है 
और कहीं पर जा रहा हूं,
मंज़िल तक नहीं पहुंच सका हूं जिनको समझना 
और खुद को समझा रहा हूं!
झुक गया हूं उनके सम्मान में कि आंच नहीं आने
दूंगा अपनें पिता जी की शान में,,
काश! वो मुझे एक काबिल समझ पाते समाज 
की नजरों से दूर जाकर शब्दों में!!
डीयर आर एस आज़ाद...

©Ramkishor Azad
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