कठपुतली पूरी रचना अनुशीर्षक में .... एक दिन देखा खेल कठपुतली का हँसती , गाती , नाचती , सजी-धजी कितनी ख़ूबसूरत लग रही थी ... तभी मेरी नजर पड़ी उसके चेहरे पर चेहरा उसका निश्तेज शून्य को ताकती सूनी -सूनी सी आँखें उसकी