कुहासे की चादर दिल के शहर को ढक रही है मुहब्बत को सीने में जैसे बर्फ़ सी जमा रही है तू आ शम्स की तरह एक बार छू ले 'सफऱ' को रेज़ा रेज़ा ही सही हिद्दत तेरी मुझे पिघला रही है शम्स- सूरज हिद्दत- तपिश 🌝प्रतियोगिता-103 🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"कुहासे की चादर "🌹