हया ऑखो से, चहरे से सराफत छीन लेती है। मेरे जैसो की खुद्दारी जरूरत छीन लेती है। वफादरो पे सक करना तो फिर अंजाम से डरना। वफादारी का हर जस्बा बगाबत छीन लेती है अमीरों के लिये सारी रियायत हर इनायत है। गरीबों के निवाले भी सियासत छीन लेती है। मुनासिफ दोस्तों से लाख बहतर है खुला दुश्मन। कि गद्दारी नवाबो से हुकूमत छीन लेती है। आज का इंसान