मेरा नाम कहाँ हैं जिसने जन्म दिया हो उसके ही नाम का जिक़्र गुनाह है मौला कितना मजबूर हैं सदियों से पितृसत्ता की है ये हाला मेरा नाम नहीं होता मेरी ही दवा के पर्चे पर मेरा नाम नहीं छपता मेरी ही शादी के आमंत्रण पत्र पर जन्म मेरा ,पर नाम नहीं होता मेरे जन्म प्रमाण पत्र पर मौत के बाद भी नाम नहीं लिखा जाता मेरी कब़्र पर लगे उस पत्थर पर अजीब सा ख़्याल रखता है ये समाज कहता है सबसे शरीफ़ वो औरत है जिसे ना आफ़ताब ने देखा हो ना महत़ाब ने देखा हो पूरा तन ढकने तक तो मान भी लूँ यहाँ का मर्द ख्व़ातीन का नाम लेना अपनी तौहीन समझता है इक रोज़ मैं दवा लेने गयी शौहर ने पर्चे पर नाम मेरा देखा और भड़क गया घर आयी तो लात घूंसों से मारा क्या मज़ाल जो तूने अपना नाम उस गैर मर्द को बताया इज़्ज़त का जिम्मा कंधों पर मेरे परिवार में शांति रहे इस लिए मैं चाहती हूँ मुझे फ़लाँ की बेटी, बहन ,बीबी और माँ कहलाऊँ आप भी नहीं पूछोगे कि मैं कौन हूँ और कहाँ रहती हूँ ? सदियों से ज़िल्लत में कैद़ रहकर जी रही हूँ मैं ख्व़ातीन हूँ अफगानिस्तान की अब तमन्ना है कि पहचानी जाऊँ नाम से अपने रिहाई चाहिए इस सदियों से चले आ रहे इस कानून से आओ हम सारी अफ़गानी ख्व़ातीन मिल कर इस मुहिम को आगे बढ़ायें "मेरा नाम कहाँ हैं ? " ©®करिश्मा राठौर #मेरा_नाम_कहाँ_है #nojotopoetry #nojotomusic #nojitoshayari #nojotothoughts #nojotowomenempowerment नाम वज़ूद है हर एक का ,फिर अफगानिस्तान की औरतें अपने नाम को छुपाने के मजबूर क्यों हैं ? आज़ादी अपने नाम के साथ जीने की मिलनी ही चाहिए किसी भी कीमत पर ।