ग़र जो बाटने से कम हो, वो इज़्ज़त नहीं। जहाँ शर्म का दायरा हो , वो मोहब्बत नहीं । जो बेच के मिली हो, वो दौलत नहीं। सब मे शामिल ना हो सको। वो अच्छी सोहबत नहीं। जो साबित करनी पड़ जाये। वो कतई शोहरत नहीं। जो किसी एक कि न हो सके । वो औरत नहीं। जो ज़ुल्म हो जाये किसी मुफ़लिस पर, वो सही हुक़ूमत नहीं। ग़र पसंद नहीं बातें हमारी, मुझे भी तुम्हारी ज़रूरत नहीं। Shah Talib Ahmed #Winter #Mujhe #Tumhari #zarurat #Nahi #shahsahab #poetrybucket #Love