चाहे कितनी भी बेखौफ हो रूह
आखिर इक रोज सहम ही जाती है,
शमशान बनते मुल्क को देख
थोड़ा तो कांप ही जाती है
इक लाइलाज रोग को खुद के जिस्म से लिपटता देख
अपनी लाल रक्त कोशिकाओं को मरता देख
थोड़ा तो डर लग ही जाता है
घरों की चहारदीवारी में बंद रहना जब एक मात्र उपाय बचे #Hindi#kavita#MyPoetry