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बसंत बहार (बसंत पँचमी) कलम कागज पर मै लिखदू , देन

बसंत बहार (बसंत पँचमी)

कलम कागज पर मै लिखदू , देना माँ ज्ञान
सफल समृद्ध कर देना बिगड़े है जो काम

ॐ सरस्वती नमो नमः माँ सरस्वती नमो नमः
विद्या दायनी नमो नमः हँस वाहनी नमो नमः

बसंत पंचमी की पावन बेला आज है आया
वीणा बजा के संगीत की मधुर धुन सुनाया
श्रीकृष्ण प्रभुने ही प्रसन्न होकर वरदान दिया
आज का दिन शारदा भवानी के नाम किया

बसंत पंचमी सरस्वती पूजा आराधना किया
माँ ज्ञान का सागर और संगीत में सुर दिया

बसंत का मौसम आया खुशिया अपार लाया
कामदेव के जैसा सुन्दर प्रेम वादियों में छाया
भोरभयो खिल उठा फूल पत्ते गजब लहराया
पवन की हिलोरे से पुल्कित मन गागुनगुनाया

प्रकृति की सुदंर छटा देख प्रभु कृष्ण ने कहा
ऋतू में मै बसंत हूं सब ऋतू का एक ही राजा

ऋतुराज बसंत में रास करे ब्रज में खेले  राधा 
खिंचे चले जाये कृष्ण प्रभु है राधा बिन आधा

राधें राधें बोलो प्रेम सरस बरसाने बसंत आया
कामदेव बसंत दूत बन कर उत्साह उमंग लाया
ये ऋतू तो अपने कान्हा मोहन प्यारे को भाया
श्रृंगार कर के राधा रानी ने प्रियवर को लुभाया

कलियों ने जादू चलाया प्रकृति भी  जगमगाया
पेड़ के पत्ते कब झड़े कब नये पत्तों से लहराया

तितली भौरें भी खूब रसास्वादन जो किया करे
मन्त्र मुग्ध होके कोयल भी कुहू-कुहू किया करे

बसंत बहार लेकर आया कोयल ने कुहू सुनाया
भौरों ने भी हाथ बढ़ा कर एक सुर में गुनगुनाय

संगीत साहित्य कला में सबसे बड़ा स्थान पाया
संगीत की एक विशेष धुन राग बसंत कहलाया

मौसम है सुहाना प्रकृति की स्वरूप देखभाया
सुंदरता देख कर लगे जैसे सुंदर तनमन काया
पेड़ की डाली पेड़ के पत्ते भी खिलते ही गया
बसंत संग हरियाली आई दिल मिलते ही गया 

स्वरचित-प्रेमयाद कुमार नवीन
छत्तीसगढ़ - महासमुन्द

©Premyad kumar naveen #बसंत_बहार
#बसंत_पँचमी
#रचनाकार_प्रेमयाद_कुमार_नवीन
बसंत बहार (बसंत पँचमी)

कलम कागज पर मै लिखदू , देना माँ ज्ञान
सफल समृद्ध कर देना बिगड़े है जो काम

ॐ सरस्वती नमो नमः माँ सरस्वती नमो नमः
विद्या दायनी नमो नमः हँस वाहनी नमो नमः

बसंत पंचमी की पावन बेला आज है आया
वीणा बजा के संगीत की मधुर धुन सुनाया
श्रीकृष्ण प्रभुने ही प्रसन्न होकर वरदान दिया
आज का दिन शारदा भवानी के नाम किया

बसंत पंचमी सरस्वती पूजा आराधना किया
माँ ज्ञान का सागर और संगीत में सुर दिया

बसंत का मौसम आया खुशिया अपार लाया
कामदेव के जैसा सुन्दर प्रेम वादियों में छाया
भोरभयो खिल उठा फूल पत्ते गजब लहराया
पवन की हिलोरे से पुल्कित मन गागुनगुनाया

प्रकृति की सुदंर छटा देख प्रभु कृष्ण ने कहा
ऋतू में मै बसंत हूं सब ऋतू का एक ही राजा

ऋतुराज बसंत में रास करे ब्रज में खेले  राधा 
खिंचे चले जाये कृष्ण प्रभु है राधा बिन आधा

राधें राधें बोलो प्रेम सरस बरसाने बसंत आया
कामदेव बसंत दूत बन कर उत्साह उमंग लाया
ये ऋतू तो अपने कान्हा मोहन प्यारे को भाया
श्रृंगार कर के राधा रानी ने प्रियवर को लुभाया

कलियों ने जादू चलाया प्रकृति भी  जगमगाया
पेड़ के पत्ते कब झड़े कब नये पत्तों से लहराया

तितली भौरें भी खूब रसास्वादन जो किया करे
मन्त्र मुग्ध होके कोयल भी कुहू-कुहू किया करे

बसंत बहार लेकर आया कोयल ने कुहू सुनाया
भौरों ने भी हाथ बढ़ा कर एक सुर में गुनगुनाय

संगीत साहित्य कला में सबसे बड़ा स्थान पाया
संगीत की एक विशेष धुन राग बसंत कहलाया

मौसम है सुहाना प्रकृति की स्वरूप देखभाया
सुंदरता देख कर लगे जैसे सुंदर तनमन काया
पेड़ की डाली पेड़ के पत्ते भी खिलते ही गया
बसंत संग हरियाली आई दिल मिलते ही गया 

स्वरचित-प्रेमयाद कुमार नवीन
छत्तीसगढ़ - महासमुन्द

©Premyad kumar naveen #बसंत_बहार
#बसंत_पँचमी
#रचनाकार_प्रेमयाद_कुमार_नवीन