जब नज़रे झुके लोग इश्क़ का फ़ितूर समझते हैं जो नज़र उठा के चले तो लोग हमें मगरूर समझते हैं किस किस को समझाते फिरेंगे हम अपनी हद ज़रूर समझते हैं कितना भी सम्भल कर चलो तुम कीचड़ में दाग़ लगेंगे ये ज़रूर समझते हैं! जब नज़रे झुके लोग इश्क़ का फ़ितूर समझते हैं जो नज़र उठा के चले तो लोग हमें मगरूर समझते हैं किस किस को समझाते फिरेंगे हम अपनी हद ज़रूर समझते हैं