खामोश उन बस्तियों से शहर की तुम्हारे मै आज कुछ गुफ्तगू कर के आया हूँ, कुछ सवालात थे जहन मे मेरे कुछ जबाब तलाश कर लाया हूँ, तमाम राज हैं उनकी खामोशी के वो यूँही खामोश नहीं रहा करती मै उनकी खामोशी को भी अपने दिल की जुबां से पढ़ कर आया हूँ अब उन बस्तियों मे एक अजीब सा अधूरापन महसूस हुआ करता है ,आफताब भी अब वहां हर सहर देर से रुख किया करता है ,अंधेरे मे तलाशा करती है वो हर एक गली तुम्हारी मौजूदगी को बड़ी ही शिद्दत से मगर हर शब मजबूरन उन्हें वो खामोशी की रवायत को निभाना पड़ता है मैने भी रवायतों के इस दौर मे एक रवायत को अदा कर दिया ,खामोश रहकर किसी बेजुबान के मानिंद जो जी रहा था अब तक, लफ्जों से अपने वो हर एक अश्आर कह दिया ,नही फिक्र इस मसले की कि तुम अब अल्फाजों की समझ रखते भी हो कि नहीं, मुझे जो कहना था वो मैने तुम्हारी खामोशी से ही कह दिया मगर तब उस वक्त से एक हिस्सा मेरा अब मुझसे यही कहता है , खामोशी बयां करता वो चेहरा तुम्हारा आज भी वहीं कहीं मेरे जहन के किसी कोने मे रहता है ,वो गलियां वो बस्तियां बेशक खामोश होंगी तुमसे वफादारी करने के खातिर ,मगर मेरा अपना कोई मेरे ही अंदर इस रुसवाई के चलते उस वक्त से खफा- खफा सा रहता है ।। #NojotoQuote