खामोशियों ने रूह के दरवाजे पर आज फिर से दस्तक दी है, अल्फाज भी भीगे भीगे से है यहां और खामोशियों के लिए बंजर निगाहें दरवाजा खोलने हैं जा खड़ी, दीवारों पर भी सूनेपन की पपड़ियां पड़ने लगी है शायद यह भी बेचारी एक तरफा चाहत में जलने लगी हैं, पर्दे तन्हाई की सिलवटें ले चुके हैं खो चुके हैं खुशियों के सारे रंग, फर्श पर अभी भी वों रूबासी की सीलन मौजूद है, बेजुबान है तकियों के लिबास यहां .... ©Gaurav Mathur #ख़ामोश कमरा