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हे केशव, मैं अभागन तेरे दर्शन की अभिलाषी, मूक बने

 हे केशव, मैं अभागन
तेरे दर्शन की अभिलाषी,
मूक बने थे जब सभी सभागण
तूने ही तो बच्चे थी मेरे काया की साड़ी,
उधड़ा पड़ा था जब भी मेरा बदन
तभी पड़े मेरे भाग्य पर तेरे कदम,
फिर बचाने को मेरी लज़्ज़ा
तूने दिखाई फिर अपनी माया.
 हे केशव, मैं अभागन
तेरे दर्शन की अभिलाषी,
मूक बने थे जब सभी सभागण
तूने ही तो बच्चे थी मेरे काया की साड़ी,
उधड़ा पड़ा था जब भी मेरा बदन
तभी पड़े मेरे भाग्य पर तेरे कदम,
फिर बचाने को मेरी लज़्ज़ा
तूने दिखाई फिर अपनी माया.
avinashjha8117

Avinash Jha

New Creator
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