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उस दिन जब मैं नन्हा-सा था,नन्हे कर पकड़ के आये थे।

उस दिन जब मैं नन्हा-सा था,नन्हे कर पकड़ के आये थे।
अंतर्विरोध तो था मन में, लेकिन वे पिता न पराये थे।।
कुछ दिन घर पर ही पढाया था,पर खिला पुष्प मुरझाया सा।
तब पिता ले गये विद्यालय, मेरा प्रवेश करवाया था।।
शिक्षित होकर मैं योग्य बनूं, मुझको भी शिखर तक जाने को।
करबद्ध गये थे पिता लिए, अपना कर्तव्य निभाने को।।
मैं आज सुशिक्षित हूँ सारा, ये श्रेय पिता को जाता है।
भाई ने वृद्धाश्रम छोड़ा, कर्तव्य न मेरा सिखाता है।।
बन गया प्रतिष्ठित अधिकारी, मैं आज पिता के ही कारण।
सेवा के लिए वापस लाया, परिवार से लड़ने को हर रण।।
कर्तव्य निभाने थे उनने, कर्तव्य विमुख मैं हो जाऊँ?
उनको वृद्धाश्रम में छोड़ा, और मैं जीवन का सुख पाऊं?
ले आया पिता को वापस मैं, वे शब्द गले नहीं उतरे थे।
घर वापस आये पिता मेरे, तब भाग्य हमारे संवरे थे।।
धन्यवाद।

©bhishma pratap singh #सुपुत्र के संस्कार#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#September 
Creator#समाज ऐवं संस्कृति#ImageStories
उस दिन जब मैं नन्हा-सा था,नन्हे कर पकड़ के आये थे।
अंतर्विरोध तो था मन में, लेकिन वे पिता न पराये थे।।
कुछ दिन घर पर ही पढाया था,पर खिला पुष्प मुरझाया सा।
तब पिता ले गये विद्यालय, मेरा प्रवेश करवाया था।।
शिक्षित होकर मैं योग्य बनूं, मुझको भी शिखर तक जाने को।
करबद्ध गये थे पिता लिए, अपना कर्तव्य निभाने को।।
मैं आज सुशिक्षित हूँ सारा, ये श्रेय पिता को जाता है।
भाई ने वृद्धाश्रम छोड़ा, कर्तव्य न मेरा सिखाता है।।
बन गया प्रतिष्ठित अधिकारी, मैं आज पिता के ही कारण।
सेवा के लिए वापस लाया, परिवार से लड़ने को हर रण।।
कर्तव्य निभाने थे उनने, कर्तव्य विमुख मैं हो जाऊँ?
उनको वृद्धाश्रम में छोड़ा, और मैं जीवन का सुख पाऊं?
ले आया पिता को वापस मैं, वे शब्द गले नहीं उतरे थे।
घर वापस आये पिता मेरे, तब भाग्य हमारे संवरे थे।।
धन्यवाद।

©bhishma pratap singh #सुपुत्र के संस्कार#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#September 
Creator#समाज ऐवं संस्कृति#ImageStories