*अनुभव/ संजय कुमार जोशी* *मै लङकी देखने गया नाम था डिम्पल थी भी वो बहुत सिम्पल, गोहाटी मे पली बङी थी इसलिए थोङी मार्डन भी थी!* *जब मै उसे देखने के लिए गया तो उसे मेरा परिवार बहुत अच्छा लगा सच मानो तो उसने तो मुझे पसन्द कर लिया था पर अब वो मुझे पसन्द नही आयी पता है क्यों?* *लङकी के दादा ने बोला की इन दोनो को आपस मे बात कर लेने दो क्योंकी जिदंगी तो इन्हे बितानी है साथ साथ!* *तो फिर क्या था मेरी नही होने वाली साली ने मुझे जिजाजी बोल कर सम्बोधित किया ओर एक कमरे की तरफ ईशारा किया।* *मै भी वहां चला गया जेसे ही मै कमरे मे दाखिल हुआ तो मेने वंहा एक औरत को जो दिखने मे उसी घर की कोई सदस्या लग रही थी उसे प्रणांम किया तो अब डिम्पल तो जोर जोर से हंसने लगी मै समझ नही पाया कि आखिर हुआ क्या है?* *फिर मेने पुछ ही लिया क्या हो गया आप हंस क्युं रही हो? तो डिम्पल बोली आपने हमारे घर की नौकरानी को प्रणांम किया इसलिए हंसी आ रही है, मेने कहा माफ किजियेगा पहली बात तो मै आपके घर के सदस्यों को जानता नही हुं ओर दुसरी बात मुझे कोई दिक्कत नही है ऐसा करने मे आखिर वो मुझसे बङी है।* *डिम्पल बोली शायद आपके घर मे नौकर नही है इसलिए आपको इस बात का अनुभव नही है इन लोगो को हम मुहं नही लगाते!* *मेने कहा बस यही फर्क है आपके ओर हमारे संस्कारो मे,कि हम सबसे पहले इसांन की कद्र करना जानते है चाहे वो कोई भी हो ओर दुसरी बात बेशक हमारे घर पर नौकर नही है पर हम तो सभी का मान सम्मान करते है आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने हमे एक अनुभव दिया।* *ये बोलकर मे खङा होकर अपनी गाङी मे आकर बेठ गया सब लोग मेरे पीछे दौङ कर आये क्या हुआ कुंवर सा आप ऐसे केसे आ गये मेने हाथ जौङकर कहा माफी चाहुगां मै आप लोगो के लायक नही हुं आप डिम्पल के लिए कोई ओर रिश्ता देखिये।* पर मुझे इस बात के लिए कोई अफसोस नही था हां मन मे एक खुशी जरूर थी की मेने सच बोला। ✍ *संजय कुमार जोशी* *पारीक चौक, बीकानेर* *मो, न, 9414426617*