**मजबूर मजदूर** समझ नहीं आता कि सदियों से मैं ही क्यों मर रहा हूँ, मजदूर हूँ मजबूर हूँ क्या इसीलिए ही मर रहा हूँ। गरीबी को दोष दूँ या महामारी का नाम लगाऊँ, मरने को पटरी पे लेटूँ या ट्रक पे चढ़ जाऊँ। लोग कहते हैं की सत्ता का राजमार्ग हमसे ही बना है, तो फिर हमारे गाँव का मार्ग हमारे खून से ही क्यों सना है। अरे बच्चे भूखे हैं बेहाल हैं तड़पती है आत्मा मेरी, पैदल चल रहे हैं पैरों में छाले हैं और ये बेदर्द दुपहरी। सुना है टी वी पे सिर्फ हमारा ही चर्चा हो रहा है, हम मर रहें हैं लेकिन हमीं पे खर्चा हो रहा है। हो जाए बहस पूरी तो कुछ काम भी कर लेना, मजदूर की मजबूरी का कुछ ध्यान भी धर लेना। माना हमें अकल नहीं है गरीबों में होती भी कहाँ है, बस हमें वो चौखट दिखा दो हमारी उम्मीद जहाँ है। बस हमें वो चौखट दिखा दो हमारी उम्मीद जहाँ है। #JeetKiKalam #corona #lockdown #majdoor #poor #Home #Pain #Poetry #jeetkikalam