वक़्त रोज़ आकर भी बीत जाता है, होता है एक सा फिर भी नया कहलाता है, रोज़ घड़ी का काटा एक ही रास्ते जाता है, मगर न जाने क्यों हर दिन बदल जाता है | By-S.S.P ©Swapnil Singh Parth #Time #Memories #ColdMoon