रोटी की तलाश में थे कल तक जो अभागे आज गांव की आस में चलने को मजबूर हैं ठहरे भी तो कैसे बेचारे बिना रोजी-रोटी के हालातो के हठ ने मज़बूरी में कदम बढ़ा दिए कन्धों पर जिम्मेदारी आँखों मे लाचारी लिए पैरों में छालों की सूजन फिर भी मीलों नाप लिए भाग्य पर प्रलाप करते आँखों के आंसू ने, मेहनत की मायूसी का मंजर बता बता दिया सूरज की आग महामारी की मार झेलकर सहारे की आस में अंगारों पर चलते मजदूर कुर्ते के कारीगर सता के पत्ते खेलने वाले, सिंहासन के सुखदेव क्या जाने इनका दर्द ✍️ अर्जुन प्रतापसिंह इन्दा लौटते मजदूर की व्यथा - अर्जुन प्रतापसिंह #Roti #Majduri #corona #covid #एपीवाणी #मजबूर #मजदूर