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सुर्ख़ खंजर न छुपा, ये कहाँ किसी का होता है सुना ह

सुर्ख़ खंजर न छुपा, ये कहाँ किसी का होता है
सुना है इसके संग वाला अपनों को खोता है।।
नांदा न बन, समझ जरा शाम आने से पहले 
निःशब्द निशा का अल्फाज तक कहाँ होता है।।
दिवास्वप्न की गर नींद न टूटी, जरा देर हो जाएगी 
रूठ जाने वाली ये मुस्कराहट फिर न वापस आएगी।।
 #आवरण #खंजर #निःशब्द #निशा #अपने #मुस्कुराहट  #aavran #yourquote
सुर्ख़ खंजर न छुपा, ये कहाँ किसी का होता है
सुना है इसके संग वाला अपनों को खोता है।।
नांदा न बन, समझ जरा शाम आने से पहले 
निःशब्द निशा का अल्फाज तक कहाँ होता है।।
दिवास्वप्न की गर नींद न टूटी, जरा देर हो जाएगी 
रूठ जाने वाली ये मुस्कराहट फिर न वापस आएगी।।
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