ग़ज़ल मैं पहले से भी ज्यादा तुझको तेरे बाद चाहूँगा मुहब्बत से भी बढ़कर मैं तुम्हारी याद चाहूँगा तेरे सब दर्द मेरे हैं तेरा हर गम भी मेरा है अगर तू गैर भी हो जाये तो आबाद चाहूँगा मेरी रग-रग में खूं बनके हमेशा दौड़ती रहो छुअन भी रूह तक पहुँचे मैं वो बुनियाद चाहूँगा तुम्हारी और मेरी इस अधूरी सी कहानी का मैं दुनिया की सभी भाषाओं में अनुवाद चाहूँगा अगर तुम दूर न होते तो माथा चूम लेते हम तुम्हारी ओर से मैं इस तरह की दाद चाहूँगा नहीं ये आरजू के तू रहे चाहत के पिंजरे में जहाँ भी तू रहे बस तुझको मैं "आज़ाद" चाहूँगा आशीर्वाद चाहूँगा!! @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद"