वो लड़की धूम धड़का थी, वो खंजर थी वो दराता थी वो लड़की धूम धड़का थी, मिश्री थी वो बताशा थी वो लड़की धूम धड़का थी वो चलती नहीं बस बहती थी, वो चलती नहीं बस बहती थी सच सीधे दिल की कहती थी, कुछ कहते थे वो आशा थी कुछ कहते महज़ तमाशा थी, वो लड़की धूम धड़ाका थी वो बादल बिजुरी हंसती थी, वो सावन भादो रोती थी कुछ कहे कि दिल को दिलासा थी, कुछ कहते केवल झांसा थी वो लड़की धूम धड़ाका थी, वो अपने दिल में आई थी और दो पल को सुस्ताई थी जब थोड़ा वो मुस्काई थी, हर रोम में लपट उठाई थी हमने भी बड़े जतन किये, उसको हम वश में कर लाये हमको सदियों से आदत है, जो भाये उसे जीत के घर लाये रेती मुट्ठी से निकल गयी, वो वक़्त के जैसे फिसल गयी वो जीवन की परिभाषा थी, कुछ कहे जुवे का पासा थी वो लड़की धूम धड़ाका थी, जब गयी तो आखिर समझे हम, वो कुदरत बन के आई थी जिस लम्हा, हम वो एक हुवे, बस उस लम्हे की कमाई थी वो आई, आ कर चली गयी, वो शाम सुहानी ढली गयी कुछ कहे के रूपा सोना थी, कुछ कहे के ताम्बा कांसा थी वो लड़की धूम धड़ाका थी, अब भी दिल के नशेमन में, एक उसका कमरा खाली है वहां उस कमरे के शीशे पर, उसके जौबन की लाली है अब ना जाने कहाँ रहती है, वो, जाने कौन दिशा में बहती है वो सब कहते है उसका क़त्ल हुआ, वो कुलच्छिनि कुलनासा थी वो लड़की धूम धड़ाका थी, ~ Swanand kirkire