पाप का ताप बड़ा जग में जब, असत्य ने अति कर डाली। असत्य द्वारा अति हो गयी, बर्बरता की सभी सीमा लांघी।। महा काल भी रुष्ट हो गये, कोई विकल्प नहीं रहा बाकी। अनंत में त्राहि-त्राहि मच गयी, महाकाल की काली जागि।। हर उर भयग्रस्त हो गया, प्रचंड वायु सी आली। असत्य के खेमे से जब आयी, चंडी की भयंकर किलकारी।। तन काला तिमिर सा, उर में भरी चण्डाली। आंखों में अंगार भरे, हर श्वास से निकले चिंगारी।। अधरों पर लाली, महाकाल की महाकाली। मुंड माल और खप्पर धारी, लंबी जीभा निकली।। माता जिस स्थान से निकली, विध्वंस की आंधी आली। शव की सवारी माता की, शमशान में रहने वाली।। असत्य सत्य से भिज्ञ हो गया, माँ की बर्बरता पड़ी भारी। काली की किलकारी के आगे, असत्य की क्रूरता हारी।। ©Rudra Sanjay Sharma #rudrasanjaysharma #kalimaa