बहोत खुश हो जाऊ रोता हूं दर्द में अंदर ही अंदर रोता हूं सारी रात ख्याल में रहता हूं सुबह होते ही फिर रोता हूं उसको भुलाने लिए पीता हूं फिर याद कर उसको रोता हूं अमीर की अमीरी देखता हूं गरीब की गरीबी पर रोता हूं सब कुछ पाने को जीता हूं मिल जाने पे फिर रोता हूं एकता की बाते में करता हूं फिर दंगे देख के रोता हूं सबको अपना मान चलता हूं धोखा मिल जाए तो रोता हूं सबके सुख की बात करता हूं सुखी देख किसीको रोता हूं ©Dharmendra Barot #write #writeeveryday#dhambarot Inspector Jagbir Kaushik