यूँ तो भीड़ है लाखों में यहाँ, मनुष्य अकेला है अंदर से क्यूँ, इर्दगिर्द सभी है संगीसाथी, मगर चेहरे पे एक अलग मुखोटा क्यूँ, जरा सी चुक से धोखा मिलता है, विश्वास खो चुका है मानव क्यूँ, रिश्ते में आत्मियता खत्म हो चुकी, मतलब के रिश्ते ही बनते क्यूँ, हटा दो ये मुखोटा अपना, ओढ़ लो आत्मियता की चादर, अकेले रहने को ये मानव मजबूर है क्यूँ। #मुखोटा, #अकेला, #धोखा