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खवाब से अब ज़रा जगने लगी हूँ जिंदगी को बेहतर समझने

खवाब से अब ज़रा जगने लगी हूँ
जिंदगी को बेहतर समझने लगी हूं।

लफ़्ज़ों की मुझको ज़रूरत नहीं है,
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूँ।

थक जाती हूं अक्सर अब शोर से,
खामोशियों से बातें करने लगी हूँ।

दुनियाँ की बदलती तस्वीर देख कर,
शायद मैं कुछ कुछ बदलने लगी हूँ।

परवाह नहीं कोई साथ आए मेरे,
मैं अकेला ही आगे बढ़ने लगा हूँ।

©Parul Yadav
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