सूकूंन की तलाश में, दूढंती रही इधर उधर मिली वो कहीं नहीं ,मिली वो मेरे ही भीतर मृगतृष्णा में भटकती फिरी, चंचलता टिकी नहीं खुशियों की कस्तूरी , मिली वो मेरे ही भीतर प्रतिपल बेचैनियां पलती रही, रतजगे बढ़ते रहे, खिलखिलाहट वो अधूरी, मिली वो मेरे ही भीतर #बैचेनी #खामोशियां #कस्तूरीमृगतृष्णा #मन भटकता है चारों ओर #बेचैनियों का है उठता शोर #व्यस्त जीवन में अपने लिए समय नहीं #तूलिका पर मेरी शायद मेरा ध्यान नहीं #tulikagarg