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महकी-महकी सी फजा मे भी कही तन्हां सी किसी पतझड़ क

महकी-महकी सी फजा मे भी कही तन्हां सी
 किसी पतझड़ का मैं बाजार नजर आती हूं

कोई शैलाब भिगा देता कोर आंखों की
मैं अपने आप की बीमार नजर आती हूं

छीनकर चैनों सुकूं देके वास्ता उसका 
अपने दिल की ही गुनाहगार  नजर आती हूं

वक्त का ही तो तकाजा है जो आज भी शायद
कल की तरहा ही मै बेजार नजर आती हूं

खबर कुछ थी ही नहीं खुद को फना कर बैठे
हारती खुद को मै हर बार नजर आती हूं

खटकती ही रही खुद ही खुदी नजरों में
मैं किसी धुंध की दीवार नजर आती हूं

©अनामिका पाण्डेय
  #महकी महकी सी फ़ज़ा

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