जीवन की बेगारी में संबंधों की चारदीवारी में कभी समय की लाचारी में ख़ुद से मिलना रहा उधारी में.. ख़ुद से ख़फ़ा हुई कई दफ़ा फिर सँभली दुश्वारी में बिखर गयी ख़्वाहिशें चिल्लर और रेजगारी में.. आज भी ज़िंदगी मुहाल है ज़माने की अनकही अनदेखी पहरेदारी में.! ख़ुद को किस गुनाह की माफी दूँ! ख़ुद पता नहीं किस बात से दुःखी होऊँ किस बात से राजी हूँ एक मुस्कान ओढ़ ली मैंने हर रोग की दवा कर ली मैंने! जीवन की बेगारी में संबंधों की चारदीवारी में कभी समय की लाचारी में ख़ुद से मिलना रहा उधारी में.. ख़ुद से ख़फ़ा हुई कई दफ़ा फिर सँभली दुश्वारी में बिखर गयी ख़्वाहिशें